रात गहराने लगी है अब सवेरों के ख़िलाफ़ जुगनुओ! अब तुम भी आओ इन अँधेरों के ख़िलाफ़ हाँ! ये जंगल कह रहा है बेज़ुबां ख़तरे में हैं अब कोई ख़रगोश ही निकलेगा शेरों के ख़िलाफ़ जोड़ने की बात कहकर बाँटने में व्यस्त हैं कौन जाए फिरक़ा-ओ-मज़हब के घेरों के ख़िलाफ़ वो हमारे राम थे जिनके लिए सब थे समान आजकल के राम हैं शबरी के बेरों के ख़िलाफ़ कब तलक नाचेगा उनकी बीन की धुन पर भला साँप को होना पड़ेगा अब सपेरों के ख़िलाफ़ सारे पंछी गा रहे थे गीत जिस पर बैठकर हम भला क्यों हो गए हैं उन मुंडेरों के ख़िलाफ़ ये तमाशा देखना बाकी था मुझको भी विवेक मेरी ग़ज़लें हो गई हैं मेरे शे'रों के ख़िलाफ़ #jugnu #nojoto #jungle #salmansultanpuri