देखो ना अभी तो कितने, लड़ाई -झगड़े बाकी थे। कितने गिले -शिकवे बाकी थे। कितना रूठना- मनाना बाकी था। कितना हंसना -हंसाना बाकी था। अब सब कुछ ,कुछ समय के लिए स्थगित करते हैं। अब से कुछ, अलग बात करते है। ज़िंदगी रही तो,फिर सिलसिला शुरू करेंगे, लड़ने का,झगड़ने का बिल्कुल इस तरह जैसे ज़िंदगी के पल असीमित हों तुम्हारे और मेरे और हम सदा एक दूसरे के साथ होंगे रूठने को, मनाने को अभी तो सबकुछ अनिश्चित सा है अभी तो लड़ने का भी जोश नहीं रूठने का भी मन नहीं। गिला-शिकवा करने का कोई भाव नहीं। शायद कुछ समझ आता ही नहीं बस प्रतीक्षा है उस घड़ी की। वो आए और आराम से बीत जाए। समय बस एक घड़ी के आर पार का है आर तो पता है मगर पार का कुछ पता नहीं। बस उसी पार में सब आर-पार हो जाना है। dekho na##