सम्भलने पर भी सम्भलता नहीं ये दिल, तेरे दीदार को मचलता है ये दिल.. कैसे समझाऊँ इस नासमझ दिल को, समझाने पर भी समझता नहीं ये दिल.. तेरे ही ख्यालों में खोया रहता है हरपल, तेरी अनकही बातों में उलझता है ये दिल.. कैसे मनाऊँ इस बेचैन दिल को, मनाने पर भी मानता नहीं ये दिल.. तेरे ही ख्वाब सजाने लगा है आजकल, सुबह-शाम तुम्हें ही ढूँढता है ये दिल.. कैसे बहलाऊँ इस बेसब्र दिल को, बहलाने पर भी बहलता नहीं ये दिल.. गोविन्द पन्द्राम #ये_दिल #citysunset