ज़िंदगी की आरज़ू थी जाने किस डगर जा बैठे? अभी चल ही रहे थे हम कि ये कदम लड़खड़ा बैठे। किसी ने बांह थामी थी कि उनसे नज़रें मिला बैठे। कुछ कदम हम चले फिर कुछ कदम वो चले, कमबख्त चलते-चलते ही उनसे दिल लगा बैठे। ज़िंदगी की आरज़ू थी जाने किस डगर जा बैठे? समझ लिया था उनको हमने हमराही अपना, कदमो को उनके कदमो से इक रोज हम मिला बैठे। वो मोहब्बत थी या थी नादानी अपने ही दिल पर खंजर चला बैठे। हमने समझा हमदर्द जिसको अपना उसके ही हाथों ज़िंदगी को लूटा बैठे। ज़िंदगी की आरज़ू थी जाने किस डगर जा बैठे? ©GLS Guftgoon- 'Lafzon se' #arzu #JusticeForNikitaTomar