✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 जीवन चक्र में कल निम्नलिखित लेख पढ़ते पढ़ते दिल को छु गया..., ये लेख उन अहंकारी लोगों के लिए है जिन्हें लगता है की दुनिया उन्हीं की वजह से चल रही है -जो अपने धन के नशे में हमेशा अपने आप को सही साबित करते हुए सामने वाले की जिल्लत की कोशिश करते रहते हैं ...काश इंसान समझ पाता की जब महाज्ञानी रावण -कंस आदि का अहंकार नहीं टिक पाया तो आपकी और हमारी तो बिसात क्या है ...हम तो जर्रा हैं .... 🙏🏼🌺 नानक और कृष्ण का एक ही संदेश 🌺🙏🏼 परमात्मा के सन्मुख होने का एक ही उपाय है और वह यह है कि तुम अपनी मर्जी छोड़ दो। तुम तैरो मत, बहो। तुम तिरो; वह काफी है। तुम अकारण ही बोझ ले रहे हो। और तुम्हारी सफलताएं-असफलताएं तुम्हारे अहंकार के ही रोग हैं। और तुम्हारी हालत वैसी है, जैसा मैंने सुना है कि एक रथ गुजर रहा था। और एक मक्खी उसके पहिए की कील पर बैठी थी। बड़ी धूल उठती थी। रथ बड़ा था। बारह घोड़े जुते थे। बड़ी भयंकर आवाज, बड़ी धूल उठती थी। उस मक्खी ने आसपास देखा और कहा कि आज मैं बड़ी धूल उड़ा रही हूं। रथ से उड़ रही है धूल। मक्खी कील पर बैठी है, पर सोच रही है, आज मैं बड़ी धूल उड़ा रही हूं। और जब इतनी धूल उड़ा रही हूं तो इतनी ही बड़ी हूं। तुम सफल भी होते हो उसके ही कारण। जो भी तुम पाते हो उसके ही कारण। तुम रथ पर बैठी एक मक्खी से ज्यादा नहीं हो। भूल कर यह मत सोचना कि इतनी धूल मैं उड़ा रहा हूं। धूल है तो उसके रथ की है। यात्रा है तो उसके रथ की है। लेकिन तुम अपने को बीच में मत ले लेना। तुमने सुनी होगी बात उस छिपकली की, कि मित्रों ने उसे निमंत्रित किया था और कहा कि आओ आज थोड़ा जंगल में घूम आएं। उस छिपकली ने कहा कि जाना मुश्किल है। क्योंकि इस छप्पर को कौन सम्हालेगा? छप्पर गिर जाएगा तो जिम्मेवारी मेरे ऊपर होगी। छिपकली सोचती है कि छप्पर को महल के वही सम्हाले हुए है। छिपकली को लगता भी होगा। तुमने सुनी होगी कहानी कि एक बूढ़ी औरत के पास एक मुर्गा था। वह सुबह बांग देता था तभी सूरज उगता था। बूढ़ी अकड़ गई। और उसने गांव में लोगों को खबर कर दी कि मुझसे जरा सोच-समझ कर व्यवहार करना। ढंग और इज्जत से। क्योंकि अगर मैं चली गई अपने मुर्गे को ले कर दूसरे गांव तो याद रखना, सूरज इस गांव में कभी उगेगा ही नहीं। मेरा मुर्गा जब बांग देता है तभी सूरज उगता है। और बात सच ही थी कि रोज ही मुर्गा बांग देता था तभी सूरज उगता था। गांव के लोग हंसे। लोगों ने मजाक उड़ाई कि तू पागल हो गई। तो बूढ़ी नाराजगी में दूसरे गांव चली गई। मुर्गे ने बांग दी और दूसरे गांव में सूरज उगा। तो बूढ़ी ने कहा, अब रोएंगे। अब बैठे होंगे छाती पीटेंगे। न रहा मुर्गा, न उगेगा सूरज। तुम्हारे तर्क भी... बूढ़ी का तर्क भी है तो बहुत साफ। क्योंकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि मुर्गे के बांग दिए बिना सूरज उगा हो। लेकिन बात बिल्कुल उलटी है। सूरज उगता है इसलिए मुर्गा बांग देता है। बांग देने के कारण सूरज नहीं उगते। लेकिन बूढ़ी को कौन समझाए? तुमको कौन समझाए? बूढ़ी दूसरे गांव चली गई और उसने देखा कि सूरज अब यहां उग रहा है। और जब यहां उग रहा है तो हर गांव में कैसे उगेगा? तुम अपनी छोटी बुद्धि से छोटे दायरे में सोचते हो। तुम्हारे कारण परमात्मा नहीं है, #परमात्मा के कारण तुम हो। यह श्वास तुम्हारे कारण नहीं चल रही है, उसके कारण चल रही है। प्रार्थना भी तुम नहीं करते हो, वही तुम्हारे भीतर #प्रार्थना बनता है। इस भाव को ख्याल में ले लें, तो नानक के ये बड़े बहुमूल्य शब्द समझ में आ जाएंगे। एक-एक शब्द कीमती है। हुकमी होवन आकार हुकमी न कहिया जाए। "हुक्म से आकार की उत्पत्ति हुई। हुक्म को शब्दों में नहीं कहा जा सकता।" हुक्म का अर्थ ठीक से समझ लेना--दि कास्मिक ला। वह जो सारे जीवन को चलाने वाला महानियम है, #हुक्म का वही अर्थ है। "हुक्म से ही जीवों की उत्पत्ति हुई। हुक्म से बड़ाई मिलती है।" हुकमी होवन आकार हुकमी न कहिया जाए। हुकमी होवन जीअ हुकमी मिलै बड़िआई। जब तुम जीतो, तो यह मत सोचना कि मैं जीत रहा हूं। और अगर तुम जीत में ही न सोचोगे कि मैं जीत रहा हूं, तो हार में भी तुम पाओगे कि मैं नहीं हार रहा हूं। वही जीतता है, वही हारता है। उसका ही खेल है। इसलिए #हिंदू इस पूरे जगत को लीला कहते हैं। लीला का मतलब है, हारता भी वही, जीतता भी वही। इस हाथ से जीतता है, उस हाथ से हारता है। लेकिन जीतने और हारने वाले बीच में ही सोच लेते हैं; जो उपकरण हैं, जो निमित्त हैं, जो साधन हैं, वे समझ लेते हैं, हम कर्ता हैं। #कृष्ण अर्जुन को गीता में कह रहे हैं कि तू व्यर्थ बीच में अपने को मत ले। वही कर रहा है, वही करवा रहा है। युद्ध उसका आयोजन है। जिनको मारना है वह मारेगा। जिनको बचाना है वह बचाएगा। तू यह मत सोच कि तू मारने वाला है और तू बचाने वाला है। कृष्ण पूरी #गीता में जो कहते हैं, वही #नानक इन शब्दों में कह रहे हैं। – ओशो एक ओंकार सतनाम प्रवचन - ०२ हुकमी हुकमु चलाए राह 🙏🏼🧡🙏🏼🧡🙏🏼🧡🙏🏼🧡🙏🏼🧡🙏🏼 अपनी दुआओं में हमें याद रखें बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....! 🙏सुप्रभात 🌹 आपका दिन शुभ हो विकास शर्मा'"शिवाया" 🔱जयपुर -राजस्थान🔱 ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 जीवन चक्र में कल निम्नलिखित लेख पढ़ते पढ़ते दिल को छु गया..., ये लेख उन अहंकारी लोगों के लिए है जिन्हें लगता है की दुनिया उन्हीं की वजह से चल रही है -जो अपने धन के नशे में हमेशा अपने आप को सही साबित करते हुए सामने वाले की जिल्लत की कोशिश करते रहते हैं ...काश इंसान समझ पाता की जब महाज्ञानी रावण -कंस आदि का अहंकार नहीं टिक पाया तो आपकी और हमारी तो बिसात क्या है ...हम तो जर्रा हैं ....