बाहर के अंधेरे दृष्टिगोचर होते ही प्रकाश की व्यवस्था कर लेते हैं भीतर के अंधेरों का आभास भी नहीं होन देते जातते है स्वयं भी अंधेरे की हानी मगर हृदय में स्थान देते हैं पालते हैं बैर मन में निर्बाध दूसरे को दोषी मान लेते हैं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla Dr. uvsays वंदना .... पूजा सक्सेना ‘पलक’