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खामोशी की जुबां जो समझे वही बोलने योग्य हैं, प्रेम

खामोशी की जुबां जो समझे वही बोलने योग्य हैं,
प्रेम को वीर रस में बदले वही भोग के योग्य है, 
रखे बाण पर शीश हमेशा वो वीर अमरता योग्य है, 
जो खेले वीर लहू से होली वही विजय के योग्य है, 
जो करे विषपान समाज हित वही अभिनन्दन योग्य है 
जो करे सामना बन अभिमन्यु वही पुत्र पुत्रता के योग्य है।। 

#अंकित सारस्वत# #अंकित सारस्वत#
खामोशी की जुबां जो समझे वही बोलने योग्य हैं,
प्रेम को वीर रस में बदले वही भोग के योग्य है, 
रखे बाण पर शीश हमेशा वो वीर अमरता योग्य है, 
जो खेले वीर लहू से होली वही विजय के योग्य है, 
जो करे विषपान समाज हित वही अभिनन्दन योग्य है 
जो करे सामना बन अभिमन्यु वही पुत्र पुत्रता के योग्य है।। 

#अंकित सारस्वत# #अंकित सारस्वत#