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यूँ तो मुमकिन नही है कि शिकवा करु अब मगर जुल्म की

यूँ तो मुमकिन नही है कि शिकवा करु अब
मगर जुल्म की इंतेहा देखता हूँ
क्यों तुझको लगता है काबिल नही हूँ
मैं खुद को तुझमे गुम हुआ देखता हूँ

ना जाने ये कैसी मोहब्बत है तेरी
हर ओर गुलाबी धुँआ देखता हूँ
वो तुम जो कहते थे अब मिलना है मुश्किल
फिर भी क्यों तुझको हर शहर देखता हूँ

क्या पीर है मैं क्या तुझको बताऊ
मैं आंखों में तेरी मंजर नए देखता हुँ #albeli mohhbat
यूँ तो मुमकिन नही है कि शिकवा करु अब
मगर जुल्म की इंतेहा देखता हूँ
क्यों तुझको लगता है काबिल नही हूँ
मैं खुद को तुझमे गुम हुआ देखता हूँ

ना जाने ये कैसी मोहब्बत है तेरी
हर ओर गुलाबी धुँआ देखता हूँ
वो तुम जो कहते थे अब मिलना है मुश्किल
फिर भी क्यों तुझको हर शहर देखता हूँ

क्या पीर है मैं क्या तुझको बताऊ
मैं आंखों में तेरी मंजर नए देखता हुँ #albeli mohhbat