बैठी थी मैं शांतचित्त, सुन तत्कालिक खबरों को, मन भी था मेरा कहीं भयभीत, देख यह सब मैं कैसे?? बैठ सकती थी मौन, फिर मन मे उमड़ा एक प्रश्न पूछ बैठी मन से कि यह लोग हैं कौन?????? फिर मैंने ठाना कि आज कहीं बाहर चलते हैं, जरा उनसे भी तो मिलते हैं, लगा जान की बाजी फिर भी काम करते है, कई तो अपनी जान भी गंवाते हैं, मिली जब उनसे मैं तो सुना उनका दिल-ए-हाल, देख व सुन उनकी यह स्थिति मन मेरा हो गया बेहाल, सुनी फिर उनकी कहानी, जो थी कर्मचारी व मजदूर मजबूर की जुबानी, ले आँखों मे सपने चार, अच्छी शिक्षा मिले बच्चों को घर छोड़ होना पड़ा लाचार, यहाँ भी देख लचर व्यवस्था किया गया बस हमारा अत्याचार, कुदरत को भी न आया रास दे दी घोर महामारी की मार, बंद हो गये सारे काम, बेघर हो निकले पैदल ही नंगे पांव, ईश्वर से कामना कि हे!ईश्वर पहुंचा दो हमे अपने गाँव, पड़ गये छाले चल चलकर ,हाँ साहब मजबूर मजदूर हैं मेरा नाम, मिल गया हमारी लाचार किस्मत का यह खूबसूरत इनाम, यही था असहनीय दर्द मेरे बाहर घूमने का उपहार, सुन उनकी दास्तान नैनो से अश्कों की बह रही थी धार। बैठी थी मैं शांतचित्त, सुन तत्कालिक खबरों को, मन भी था मेरा कहीं भयभीत, देख यह सब मैं कैसे?? बैठ सकती थी मौन, फिर मन मे उमड़ा एक प्रश्न पूछ बैठी मन से कि यह लोग हैं कौन?????? फिर मैंने ठाना कि आज कहीं बाहर चलते हैं, जरा उनसे भी तो मिलते हैं,