भरे पेट से भूख पर लिखी गई नज़्में खोखली होती है इतनी खोखली कि उनसे एक बच्चे के लिए रोटी भी नही खरीदी जा सकती.! हाँ, मगर घर बैठे भूख और दंगे पर लिखने वालों को मिल जाती है रोटियाँ, नौकर-चाकर, शोहरत और साथ ही तमगा श्रेष्ठ कवि का..!! बहरहाल मैं प्रेम पर लिखता हूं.. पर भूख क्या है,मालूम है.. दंगे में मरनेवाला कोई अपना भी था.. पर फिलहाल मैं नही लिख सकता चीख़ पर कोई नज़्म... मुझे नही आता सीने को छल्ली करती चीखों पर नज़्म लिखना..! भरे पेट से भूख पर लिखी गई नज़्में खोखली होती है इतनी खोखली कि उनसे एक बच्चे के लिए रोटी भी नही खरीदी जा सकती...! हाँ, मगर घर बैठे भूख और दंगे पर लिखने वालों को मिल जाती है रोटियाँ, नौकर-चाकर, शोहरत और साथ ही तमगा श्रेष्ठ कवि का..!! बहरहाल मैं प्रेम पर लिखता हूं.. पर भूख क्या है,मालूम है.. दंगे में मरनेवाला कोई अपना भी था.. पर फिलहाल मैं नही लिख सकता चीख़ पर कोई नज़्म... मुझे नही आता सीने को छल्ली करती चीखों पर नज़्म लिखना..!