त्रैतायुग में धर्म के तीन पैर थे। इस युग में पाप की मात्रा 25% और पुण्य की मात्रा 75% थी। द्वापर में धर्म के दो पैर ही रहे। इस युग में पाप की मात्रा 50% और पुण्य की मात्रा 50% थी। कलिकाल में धर्म के पैरों का कोई नामोनिशान नहीं है। इस युग में पाप की मात्रा 75% और पुण्य की मात्रा 25% ही रह गए है। -pooja singh rajput✍🍁 #वैदिककाल#भगवान#आनादीकाल#आदिकाल#कर्म#निशाचर#युग