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कविता - धरा बखान इरादा क्यूँ बनाते हो वहाँ अम्बर म

कविता - धरा बखान
इरादा क्यूँ बनाते हो वहाँ अम्बर में उड़ने का,
धरा भी खूबसूरत है इसे तुम गौर से देखो। 
वहाँ बस धूप तपती है कुछ काले मेघ चलते हैं,
यहाँ पर धूप खिलती है कभी तुम शीत में आओ।
नए पत्ते निकलते हैं नई कलियाँ भी खिलती हैं,
मनोहर फूल खिलते हैं जो सब के मन को हरते हैं।
घटा सावन की छाती है शाख पर कोयल गाती है,
विविध रंगों की एक तितली मेरे आँगन में आती है।
धरा पर देह धरकर के यहाँ पर सुर भी आते है,
कभी वो राम बनते हैं कभी कृष्ण बन जाते हैं।
मिले फुरसत कभी जो फिर निखिल के पास आ जाना,
धरा को छोड़कर जाने की चाहत दफ़्न कर दूँगा,
तुम्हें धरती दिखाऊंगा इसी में मग्न कर दूंगा।
--निखिल की कलम से
 #कविता-#धरा_बखान
कविता - धरा बखान
इरादा क्यूँ बनाते हो वहाँ अम्बर में उड़ने का,
धरा भी खूबसूरत है इसे तुम गौर से देखो। 
वहाँ बस धूप तपती है कुछ काले मेघ चलते हैं,
यहाँ पर धूप खिलती है कभी तुम शीत में आओ।
नए पत्ते निकलते हैं नई कलियाँ भी खिलती हैं,
मनोहर फूल खिलते हैं जो सब के मन को हरते हैं।
घटा सावन की छाती है शाख पर कोयल गाती है,
विविध रंगों की एक तितली मेरे आँगन में आती है।
धरा पर देह धरकर के यहाँ पर सुर भी आते है,
कभी वो राम बनते हैं कभी कृष्ण बन जाते हैं।
मिले फुरसत कभी जो फिर निखिल के पास आ जाना,
धरा को छोड़कर जाने की चाहत दफ़्न कर दूँगा,
तुम्हें धरती दिखाऊंगा इसी में मग्न कर दूंगा।
--निखिल की कलम से
 #कविता-#धरा_बखान
nikhilkumar6445

Nikhil Kumar

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