दिल खेलने की चीज़ है जो मन अपना बहलाने चले आये उधार की ज़िंदगी है यार हक इस पर भी जताने चले आये नफरतें तो अलग चीज़ हैं लोग मोहब्बत से भी मार डालेंगे इलाही तेरी दुनिया में अब ये कैसे कैसे बहाने चले आये किस किस तरह का फरेब लोग करते रहते हैं जीते जी तो पूछा नहीं मरने के बाद कब्र सजाने चले आये खुदा दिलों में बसता है तो लोग दिलों को तोड़ कैसे देते हैं जज्बातों की दुनिया में ये कैसे कैसे ज़माने चले आये ये दस्तूर - ए - दुनिया तू बदल क्यों नहीं देता उम्रभर की अदावत उन्होंने अब वो रिश्ते निभाने चले आये बस उन्हें ही थी मोहब्बत और वो ही ढ़ूंढ़ते फिरे मुझे कब्र पर आकर बस इतना कहा मुझे छोड़कर किस बहाने चले आये शायर - बाबू कुरैशी #शरीक-ए-हयात