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कैसे बिताये दिन हमने,कैसे देखे दौर ज़माने..! बेपरव

 कैसे बिताये दिन हमने,कैसे देखे दौर ज़माने..!
बेपरवाह महबूब छोड़ गया,किसी और से इश्क़ निभाने..!

एहसासों के पन्ने ख़ाली,जाली जज़्बातों को लगा ठिकाने..!
हमसे सीख कर कला इश्क़ की,हम को ही चले इश्क़ सिखाने..!

अस्तित्व की लड़ाई है अब,आईने भी हमको न पहचाने..!
बहक चलें हैं क़दम कहीं पर,महफ़िलों के लगे मयख़ाने..!

दोष दे रहे हैं किस्मत को अपनी,कमियों को बिन पहचाने..!
चित्त की चिता ये कैसी व्यथा,अरमानों को अपने सुलगाने..!

अब न होगी मोहब्बत किसी से,अल्फ़ाज़ों को चले यूँ दफ़नाने..!
तोड़ क़लम जीवन की अपने,स्याही को अटल सत्य समझाने..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #relaxation #beparwahmahboob