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"मेरे हाथों से समय कुछ यूँ फिसल गया , जैसे ताश का

"मेरे हाथों से समय कुछ यूँ फिसल गया ,
जैसे ताश का घर हवाओं में बिखर गया ....
सोचती रही मै अब मेरा वक्त आएगा
मगर वक्त तो वक्त ठहरा ,
कब रहा एक सा बस देखते देखते ही बदल गया ...

©Parul Yadav
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