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Autumn *शुरुआती दिनों में* तब पता नहीं क्या लग

Autumn *शुरुआती दिनों में* 


तब पता नहीं 
क्या लगता था घरवालों को! 

जब बंद कमरे में अकेले बैठकर 
तुम्हारी खामोशी पढ़ते-पढ़ते 
गुनगुनाने लगता कुछ पंक्तियाँ .....

फिर इसी क्रम में रचने लगती हैं
तुम पर कविताएँ..........

(इसी क्रम को आज भी क्रमशः निभाया जा रहा है)


मगर अब सबको लगता है
पढ़ना, लिखना, कविताएँ गुनगुनाना ...
ये सब शौक हैं हमारे ।

 *गोकुल*

©Gokul Sharma
  #autumn
gokulsharma2958

Gokul Sharma

Bronze Star
New Creator

#autumn #Poetry

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