वह घाटी भी आज सुकून महसूस कर रही होगी जिसने आजादी से लेकर आज तक दुखो के तिलिस्म को देखा होगा ,आज घाटी में खुशियों की लहर दौड़ने को बेताब नजर आने लगी है ,लगता है एक नया सवेरा इस बेजान घाटी को संवारने का बैचेन है। __ विजय रावल देश प्रेम