ना पहले जैसी किलकारियां, डरता रहता मन, उन्मुक्त नीला नभ देख के मन मयूरा ना नाचे देखके वहिशीपन, हैवानियत के संसार में, कहीं खो ना जाएं भोलापन, तृणावर्त प्रवृत्ति का आभास है, इसलिए सहमा-सहमा,ख़ामोश है बचपन। समय सीमा : 21.01.2021 9:00 pm पंक्ति सीमा : 4 काव्य-ॲंजुरी में आपका स्वागत है। आइए, मिलकर कुछ नया लिखते हैं,