बलिदानियों की सांसो से लहरा रहा ये झंडा है वे तो बस चुनिंदा है फिर भी रगों में जिंदा है परतंत्रता की बेङियों में उसने रहना सीखा नहीं आघात पर आघात सहे फिर भी कभी चीखा नहीं आई तो बस एक चीख INQUILAB ZINDABAAD ~विश्व रंजन #newindia