!! मेरे कृष्ण मुरारी !! मै छवि निरेखू जब-जब तोरी मन मोरा हरसाए शेष रही ना मन की इच्छा जबसे प्रीत लगाए.. श्यामल-श्यामल सुरत तोरी देखूँ सबै सुख पाऊं तू मोहन मेरो मनमोहन सोच-सोच मुस्काऊँ तुम बिन कोई मीत ना मेरो तोसे है बस नाता तेरो स्नेह-सुधा में तरकर मन मोरा सरसाता हे माधव ! हे कृष्ण कन्हाई ऐसो ही प्रीत रहे तुमसे मन अकुलाये जब-जब मेरो स्नेह ज्ञान मै पाऊं तुमसे। मै रुप निरेखू जब-जब तोरी मन मोरा हरसाए शेष रही ना मन की इच्छा जबसे प्रीत लगाए श्यामल-श्यामल सुरत तोरी देखूँ सबै सुख पाऊं तू मोहन मेरो मनमोहन