कहां पर बोलना है और कहां पर बोल जाते हैं जहां पर खामोश रहना होता है वहीं पर मुंह खोल जाते हैं जब कटा शीष अमृता देवी का तो हम खामोश रहे लेकिन जब कटा सीन पिक्चर का तो सब बोल जाते हैं नई नस्ल के यह बच्चे जमाने भर की सुनते है मगर मां-बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं बहुत ऊंची ऊंची दुकानों में कटाते हैं जेब सब अपनी मगर गरीब मजदूर मांगेगा तो सिक्के भी बोल जाते हैं अगर गलती हो मखमल की तो सब चुपचाप रहते हैं मगर फटी चादर की गलती हो तो सब बोल जाते हैं हवाओं की तबाही को तो सब चुपचाप सहते हैं मगर गलती हो चिरागों की तो सब बोल जाते हैं बनाते पीते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं कहां बोलना होता है और कहां बोल जाते हैं जहां खामोश रहना होता है वहां मुंह खुल जाते हैं ©Monika kanwar my topics#social issues