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*मैं* में *मैं* तब तक ही सलामत है जब तक *तू* मुझ म

*मैं* में *मैं* तब तक ही सलामत है
जब तक *तू* मुझ में सलामत है।
*मैं* खो गया है सदा के ही लिए 
जब से *तू* आ बसी मेरे ही *हिये*
*मैं* से *हम* तक का सुहाना सफर 
*तू* ने ही तय किया बन हमसफर
भटक रहा था कब से बियाबान में
*तेरे* आने से लगा, हूं *खियाबान* में
✍️राज़

©KRISHNA
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KRISHNA

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