कृपया अनुशीर्षक पढ़े अक्सर ज़िन्दगी कुछ तारीखों में उलझ सी जाती है। और इन्हीं उलझी सी तारीखों में होता है हमारा यादों का घर या यूँ कह लीजिये की हमारा सब कुछ। ये रद्दी वाले ना हो तो कितनी ही यादें धूल में लिपटकर ख़ाक हो जाएं, आज एक पुराना सा कुछ हाथ लगा है। ये कोई डायरी नहीं थी, बस एक छोटी सी किताब। वैसे एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में सबसे खास बात होती है की यहाँ हर चीज़ की अपनी एक कहानी होती है। अब कहानियां जो है वो हम लोग रोज़ रोज़ नहीं दोहराते है, ये किस्से सुनाये जाते है अक्सर ऐसे ही किसी छुट्टी वाले दिन जब कोई पुराना फोटो एल्बम या कोई धूल से सनी किताब रद्दी वाले के तराज़ू का पलड़ा अखबारों की गड्डी के साथ भारी कर रही होती है। और इन्हें हम कहते है हमारी ज़िन्दगी की डायरी कहते है। कुछ पन्नों का हिसाब रखा है संजोकर के वेद