अच्छे लोगों को अकसर, ज़्यादा दुखों का सामना करते हुए देखा है, कुछ कहते हैं, क्योंकि कलयुग है, कुछ कहते हैं पिछले करमों का लेखा है, या कहीं उनके हाथ में भला कर, बदले में दुख पाने की, कोई खास ही रेखा है। अच्छे लोगों का सफर, अच्छाई से शुरू हो कर, अच्छाई पर ही खत्म हो जाता है, बुराई के इतने थपेड़े खाकर भी, अच्छा इंसान, अच्छाई त्याग नही पाता है। सबको अपने जैसा सोचना, उसके लिए अभिशाप बन जाता है, गुस्से में कभी-2, कोशिश करता है बुरा बनने की, पर ज़्यादा देर, उसका ये नाटक चल नही पाता है। फिर लौट कर बुद्धु, घर आता है और अच्छाई ही अपनाता है, आखिर अच्छाई उसका वजूद है, उससे उसका बेजोड़ नाता है। करता तो है मुकाबला डट कर, वो हर चीज़ का, पर कहीं अंदर से, सह-2 कर, वो टूट सा जाता है। #अच्छेलोग