अपने पराये का भेद Diary 06.10.2005 अपने पराये का भेद सुकून मिलता था कभी अपनों को देख कर, मग़र वो हम से नज़रें फेर लेते हैं, सुकून मिलता है आज भी उन्हें देख कर, मग़र वो हमें ग़लत समझ लेते हैं।