लबो पर आई बात छिप गई होठों से वक्त का तकाजा मुकम्मल न था इश्क के बागानों में खिले, गुलाबों की सौगंध गुस्ताखी करनी थी, जनाजे में जाना न था हम आज भी वक्त ,लम्हा, यादें सब गिनकर रखते हैं थोड़ी देर हो गई, उसने समझा मुझे आना न था कभी आईने में छिपी, यू सच्चाई देख लेती सब खैरियत है कैसे कह दूं ?ये तो मुझे बताना न था इजहार ए मोहब्बत भी, कोई मोहब्बत है यह तो सुकून है दिल का, कोई बहाना न था खामोशी का अर्थ कुछ दूसरा ना समझो गुफ्तगू भी कभी इश्क का दरवाजा न था #shyari #poetry #gazal #hindi #love डॉ.अजय मिश्र Suman Zaniyan