उपेन्द्रनाथ अश्क की कलम से प्रस्तुत है- उसने मेरा हाथ देखा और सर हिला दिया, इतनी भाव प्रवीणता, दुनिया में कैसे रहोगे! इस पर अधिकार पाओ, वरना लगातार दुःख दोगे निरंतर दुःख सहोगे।