उलझती लटों को फिर सुलझा रही हुं मैं चांद तले तेरा इन्तजार कर रही हुं अन्धेरा है चारों ओर गजब ही सन्नाटा है मैं चुपके से तेरी यादों को फिर बुन रही हुं उलझती लटों को फिर सुलझा रही हुं इंतज़ार कर रही हूँ 🍁🍁🍁