ये कैसी आजादी..... (Read In Caption) मना रहे तुम आज़ादी, पर अब भी यह कहाँ मिलती है। इसी सोच में भारत माँ की, सांसें अब भी घुटती है। लूट रहे अपना ही देश, सत्ता के अब सब मतवाले, न देश न अब कोई प्रजा, बस कुर्सी ही तमाशा बनती है। जब बेटे मजहब के नाम पर, आपस में लड़ाई लड़ते हैं। चंद रुपयों की खातिर, माँ से तक गद्दारी करते हैं। तब रोती है दिल ही दिल में, और टूट वो जाती है।