आज कल हम सब खुद में वयस्त है इतने , बर्बाद करते खाना कुछ और भूख से मरे कितने। आस पास देखे तो हल भी बहुत है बिखरे, कहते हम पर मेरा पेट है भरता भाड में जाए जितने। कूड़े में जाये खाना उस का हमको दर्द नहीं, किसी भूखे के पेट में जाए उसकी कोई जरूरत नहीं। थोड़ा थोड़ा मिलकर भी गर हाथ बढाये, ऐसी कोई राह नहीं जिसकी मिलती मंजिल नहीं। शादी पार्टीज भोज में बचे तो संस्थानो में दे, बहु राष्ट्रीय उद्योगी संस्थानों में दिन के तीन बार बने। आधा जाता पेट में आधा कूड़े की खान बने, गर होता दिल लोगों का तो कितनों का पेट भरे। पर हमको है मिलता दूजो कि चिंता क्यूं करें, मेरी तस्तरी में खाना किसी को मिले न मिले। सोचो उस मां कि हालत होती होगी क्या, जो बच्चों के खाने के लिए हर रोज बिके। वो पिता घुट घुट के रोज है मरता, जिसका बच्चा भूखे पेट पले रोटी को तरसे। गर हो जाए सब लोगों की सोच अगर, कपड़ा मकान न सही भर जाएगा पेट मगर। भूख से मरने वालों की शायद कम हो जाएगी दर, भूख से मरने वालों की कम हो जाएगी कुछ देर। "किरन" भूख #भूख #बेबसी #खुदगर्ज