ढूंढती फिरती थी कभी खुद को हर दफ़ा अब कर लिया स्वयं को अंकित सफा़ दर सफा़ चाहे कहे सब लोग बेवफा़ भले हो हरबार नुकसान या नफा़ वैसे भी कुबूल नहीं किसी का तोहफा़ अपनी मर्जी से करती हूं सबके साथ वफा़ #कविता #अनुभव #मेरेविचार#अल्फ़ाज