आसरा न दरख़्त साया न घर है कोई, न मंजिल न सफर न रहबर है कोई। न जीने की तम्मना न मरने इरादा ही है, ज़िन्दगी के इधर है कोई न मौत के उधर है कोई। पड़ा है दिल मेरा कब से मानिंद सहरा के मकाम है ये किसी का न किसी की गुज़र है कोई। नज़र उठा कर जिधर देखो लाशें ही लाशें हैं, ज़िंदा यहां रूह है न जिगर है कोई। सब के सब चुप हैं ज़ुल्म पर जुल्म देखते हैं, नज़रों में अब हमारी अमीर है न मोतबर है कोई। ~हिलाल हथ'रवी . ©Hilal Hathravi #WritingForYou #Motbar #Guzar #Rahbar #Laash #Idhar #Udhar #Maut