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.....मत खोलों वो खत 'ज़ालिमा' शब्द -शब्द रो पड़ेंगे

.....मत खोलों वो खत 'ज़ालिमा'
शब्द -शब्द रो पड़ेंगे ,यादे रो पड़ेंगी,

देखोगे अगर तुम ,कच्ची राहो पर चलती उनकी एडिया,
तो इस महल की दीवारे -दीवारे तक रो पड़ेंगी,

जब ख्वाबो को बाज़ारो मे गुमसुम गुमसुम देखोगे,
तो बचपन रो पड़ेंगे ,जवानी रो पड़ेंगी,

जिस दिन तुम आ जाओगी सामने,
तो तुम्हारी आँखे रो पड़ेंगी ,मेरी आँखे रो पड़ेंगी,
मत खोलों वो खत जालिमा.....

           ------रामेश्वर मिश्रा
.....मत खोलों वो खत 'ज़ालिमा'
शब्द -शब्द रो पड़ेंगे ,यादे रो पड़ेंगी,

देखोगे अगर तुम ,कच्ची राहो पर चलती उनकी एडिया,
तो इस महल की दीवारे -दीवारे तक रो पड़ेंगी,

जब ख्वाबो को बाज़ारो मे गुमसुम गुमसुम देखोगे,
तो बचपन रो पड़ेंगे ,जवानी रो पड़ेंगी,

जिस दिन तुम आ जाओगी सामने,
तो तुम्हारी आँखे रो पड़ेंगी ,मेरी आँखे रो पड़ेंगी,
मत खोलों वो खत जालिमा.....

           ------रामेश्वर मिश्रा