Nojoto: Largest Storytelling Platform

पैसे नजारे बदल रहे हैं, अपने संभल रहे हैं । रिश

पैसे

नजारे बदल रहे हैं,
 अपने संभल रहे हैं ।

रिश्ते टूट रहे हैं,
अपने छूट रहे हैं ।

क्योंकि पैसे नहीं है,
 बिन पैसे के जमाने में
 नहीं कुछ सही है ।

रिश्तो की अहमियत,
 चुरा ले गया पैसे ।
आज अपनी भी कहते हमसे,
बिन पैसों के हम तुम्हारे हितैषी कैसे I
                           -अनुष्का वर्मा

©kitabe_kavita_ki #poem 

#boat
पैसे

नजारे बदल रहे हैं,
 अपने संभल रहे हैं ।

रिश्ते टूट रहे हैं,
अपने छूट रहे हैं ।

क्योंकि पैसे नहीं है,
 बिन पैसे के जमाने में
 नहीं कुछ सही है ।

रिश्तो की अहमियत,
 चुरा ले गया पैसे ।
आज अपनी भी कहते हमसे,
बिन पैसों के हम तुम्हारे हितैषी कैसे I
                           -अनुष्का वर्मा

©kitabe_kavita_ki #poem 

#boat