** दर–ब–दर *** दर–ब–दर फिर रहे हैं तेरे फिराक़ में, पल पल जल रहे हैं इश्क की आग में, क़िस्मत की लकीरें कुछ यूं खफा हुईं, एक मुझे छोड़ सभी भीगें बरसात में। यादों के महल, जो थे मिल के बनाए, ढह नहीं पाये वक्त गुजरने के साथ में। सांसों के लरजने की शिकायत न रही, वो भी चल रहीं हैं आज कल आज में। सब कुछ है ,फिर भी, कुछ कमी सी है, जाने कैसी बेचैनी है जिंदगी की प्यास में। ©$ubha$"शुभ" #ForYou#Uशुभ #AloneInCity