हम तो कभी किससे मिले नहीं कभी, आरोप लगाते गए बीच चौराहों पर, सब हसते गए, हम रोते हुए, जिंदगी से क्या सीखा , कुछ पल बचना भी नसीब नहीं, हम तो खोते गए अपने को, पाने की कोशिशें भी नहीं कि, तुम रूठ गए, हम अंधकार में डूबते गए । थोड़ीसी फुरसत निकाल, मंजिल तक हाथ पकड़ कर जाएंगे तेरा, अभिमान की मदिरा पीकर भी हसते जाएंगे उस चौराहों पर, जहाँ हम कभी मिलते थे।