दूर फ़लक के मैं तुझको तकता हूँ, अपना ही अक्स झिलमिलाता है तुझमें कहीं, इस ओट निहारूँ, कि उस ओट निहारूँ, तू चाँद है मेरा, मैं तेरा नूर हूँ... (वंदना शर्मा) # दूर फलक के मैं