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ना जाने कब से अंदर बहुत प्यार बसा है और बसा

ना जाने कब से अंदर
बहुत   प्यार   बसा  है
और   बसा   है  गुस्सा
प्यार  की   भरमार  है
गुस्सा पल दो पल  का
मुझे  दोनों ही  चाहिए
मगर ना ज़्यादा गुस्सा
और ना  ज़्यादा  प्यार
दोनों ही  ख़तरनाक है
इसलिए  सोच   लिया
कुछ  तालमेल बैठा लूं
तुरंत ही फैसला किया
थोड़ा सा गीत गाता हूं
तो कभी  संजीदगी से
कलम   उठा  लेता  हूं
लिखता   हूं   मन  की
धीरे  से कश्मकश को
काग़ज़ पर उतारता हूं
और  ज़रा आसानी से
ज़िंदगी गुज़ार लेता हूं

©अदनासा-
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