#मेरा_एक_छोटा_सा_लेख एक सफर शुरू किया है हमने ज़िन्दगीे ! एक स्टेशन से आखरी स्टेशन तक , कही बत्तियां लाल , तो कहीं हरा जलती हैं । हरा कम लाल ज्यादा जलती है । इस सफर में बहुत से अपने और अजनबी मिलते हैं , अजनबी कहते हैं देख - भाल के चलना अपने भी मिलते हैं मगर बात कहां होती मुँह मोड़ लेते क्यू की पिछले स्टेशन पर कुछ बात हो गयी थी । लेकिन अंत समय में आखरी स्टेशन तक छोड़ने आते हैं ये सोच कर हमें भी इसी आखरी स्टेशन तक जाना है तो क्यू ना जब तक ये सफर चलता है तब तक हम हर स्टेशन पर यू हीं हम मोहब्त से मिलते रहें ।