मैं बहता हूँ सात सुरों में शायद कान्हा के अधरों में सबा महकती फागुन की और गुँजन है मेरा भौरों में कोयल बैन करे जंगल में और फिरता हूँ मैं शहरों में चीख़ मिरी गलियों तक पहुँची बात चली केवल बहरों में हमने उनको ख़ुदा बनाया हमें गिना केवल ग़ैरों में दिन भर काटों में सोये थे रात कटी थी अंगारों में जाने मुझको क्या पाना है क्यों फिरता हूँ बाज़ारों में अब पत्थर भी पिघल पड़ेंगे कुछ तो है इन अश'आरों में ©SANU #सातसुरोंमें #samandar #Hindi #Shayari #Nojoto #nojotoshayari #loveshayari #poem