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कही पढ़ा था निंदा उसी की होती जो जिंदा है। लेकिन

कही पढ़ा था निंदा उसी की 
होती जो जिंदा है।
लेकिन महसूस किया हमने
निंदा उसी की होती 
जिस सा बनना चाहते हम।
जिसके तरह काम न कर पाते हम।
कुछ ख्याली दुनिया में गोते लगाते
कुछ लोगो को नीचा दिखाते
जीवन आगे बढ़ाते हम।
हम दुखी क्योंकि पड़ोसी सुखी
का मूल मंत्र अपनाते हम।
तरक्की औरों की देख
गुब्बारे सा मुंह फुलाते हम।
फिर क्या अंतर है मनुष्य और जानवर में।
फिर क्यों बुद्धजीवी कहलाते हम।
 #निंदा
कही पढ़ा था निंदा उसी की 
होती जो जिंदा है।
लेकिन महसूस किया हमने
निंदा उसी की होती 
जिस सा बनना चाहते हम।
जिसके तरह काम न कर पाते हम।
कुछ ख्याली दुनिया में गोते लगाते
कुछ लोगो को नीचा दिखाते
जीवन आगे बढ़ाते हम।
हम दुखी क्योंकि पड़ोसी सुखी
का मूल मंत्र अपनाते हम।
तरक्की औरों की देख
गुब्बारे सा मुंह फुलाते हम।
फिर क्या अंतर है मनुष्य और जानवर में।
फिर क्यों बुद्धजीवी कहलाते हम।
 #निंदा