Nojoto: Largest Storytelling Platform

आज फिर दहक रहे हैं लब ना जाने कब से तुम्हारे लबों

आज फिर दहक रहे हैं
लब ना जाने कब से
तुम्हारे लबों से छुए जाने को
बेचैन हो रहे हैं।

सावन की बूँद क्या गिरी इन पर
मानो मेरे 2 नाज़ुक होंठ
पिघल कर गुल कंद हो गए हैं।

कस कर कमर को जकड़ना
फिर लब पर साँस फूंकना
हाय! मैं क्या करूँ
लब से होती हुई वो
भीगी सांसों की नमी
मेरे दिल तक जा रही है।

लब मेरे तुम्हारे दीदार से
ना जाने क्यों और सुर्ख होने लगते हैं।
आते ही सामने तुम्हारे
शर्म-ओ-हया से 
ये दांतों तले दबने लगते हैं।

आज फिर बिस्तर पर मचल रही हूँ मैं
और लब तुम्हारे लबों से मिलने
को तड़प रहे हैं
तड़प रहे हैं।

©Surmyii 
  #लवऔररोमांस