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तुम्हारे गम की अब तासीर घटती जा रही है हमारी आँख

तुम्हारे गम की अब तासीर घटती जा रही है 
हमारी आँख से भी धुंध छटती जा रही है 
कोई मंसूबा तो अंजाम तक भी आ न पाया
और ये उम्र है कि रोज़ घटती जा रही है 
बिसाते ज़िंदगी की देख ली हर चाल मैंने
ये मोहरों को मुसलसल ही बदलती जा रही है 
बा माज़ी ज़िंदगी को जब भी देखा आइने में 
मुहब्बत हर कदम पर मात खाती जा रही है 
गज़ब है ज़िन्दगी में तिश्नगी का ये भी आलम
हैं दरिया के किनारे प्यास बढ़ती जा रही है 
समर ताउम्र भटका इक घड़ी भी जी न पाया
कज़ा भी आजतक आँखें चुराती जा रही है
तुम्हारे गम की अब तासीर घटती जा रही है 
हमारी आँख से भी धुंध छटती जा रही है 
कोई मंसूबा तो अंजाम तक भी आ न पाया
और ये उम्र है कि रोज़ घटती जा रही है 
बिसाते ज़िंदगी की देख ली हर चाल मैंने
ये मोहरों को मुसलसल ही बदलती जा रही है 
बा माज़ी ज़िंदगी को जब भी देखा आइने में 
मुहब्बत हर कदम पर मात खाती जा रही है 
गज़ब है ज़िन्दगी में तिश्नगी का ये भी आलम
हैं दरिया के किनारे प्यास बढ़ती जा रही है 
समर ताउम्र भटका इक घड़ी भी जी न पाया
कज़ा भी आजतक आँखें चुराती जा रही है