शिकायत_ मिलते हो मुस्कुराते हो चले जाते हो! हमको ऐसे भला तुम क्यूँ जलाते हो!! साफगोई तुम्हारी हमें मंजूर है मगर, चुपचाप रहकर दिल को क्यूँ सताते हो!! माफ़ी मांग ली है मैंने तुमसे पहले ही, दूर रहने को अजब बहाने क्यूँ बनाते हो!! कर ले शिकायत हक़ है तेरा ऐ दोस्त, भरी महफ़िल में फासले क्यूँ दिखाते हो! बोझ दिल में रखके जियेगा कैसे गिरीश, खेल से होकर बाहर मुझे क्यूँ हराते हो!! गिरीश 30.07.19 शिकायत