कितने मसरूफ़ हैं वो,आज हमें आज़माने में जिनको ढूंढ़ते फिरते थे,कभी हम सारे ज़माने में पल भर में टूटकर बिखर गया,मिट्टी का एक घरौंदा किसी की पूरी उम्र लगी थी,तिनका-तिनका जुटाने में यादों के किसी मोड़ पर,रोज मिल ही जाते हो तुम सदियां लग जाती हैं,वो पहला इश्क भुलाने में दुनिया अक्सर पूछती है,हमें क्या हुआ है कितनी रातें गुज़ारी हैं,कुछ लिखने कुछ मिटाने में कभी रिश्तों की आंच में,जल जाते हैं हाथ भी बड़े माहिर हैं वो,चोटों के निशान छिपाने में वो बस एक खुशबू है जो, कहीं नज़र नहीं आती नाकाफ़ी है लफ्ज़ मेरे, कहानी पूरी सुनाने में... © abhishek trehan #mashroof #zamana #yqdidi #hindipoetry #hindishayri #mydiary #mythoughts #emptiness