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कुछ कहना है सुनना इत्मिनान से ये अश्रु धारा बह चु

कुछ कहना है सुनना इत्मिनान से 
ये अश्रु धारा बह चुकी बहुत 
चलो न फिर से बेमतलब सबको हंसा आते हैं 
जो हुआ सो हुआ 
चलो न भूल जाते हैं 
ये गिले ये शिकवे हुए बहुत 
चलो न रिश्तों के नये फूल खिलाते हैं 
सच्चे मन से अच्छी यादों के साथ 
चलो न अपनी अपनी गलती मान जाते हैं 
नहीं उलझते इस फेर में 
कि था कौन ज्यादा गलत 
चलो न फिर से एक बार बच्चे बन जाते हैं 
इस दुनियादारी के जंगल में 
खो गया था जो बचपन 
चलो न उसे फिर से ढूंढ़ लाते हैं 
कुछ तुम कहो कुछ मैं सुनूं 
सुर तुम्हारे,धुन मैं बुनूं 
चलो न गीत लड़कपन के गुनगुनाते हैं 
खेल सारे वो बचपन के 
जिसमें तन थकता 
पर मिलती मन की ख़ुशी 
चलो न फिर से दौड़कर उन्हें खेल आते हैं 
मेरा तेरा अपना पराया हुआ बहुत 
चलो न फिर से हम बन जाते हैं 
छणभंगुर है ये जीवन सबका 
नहीं पता किसकी हैं कितनी साँसे 
चलो न आज इस पल में जी जाते हैं ...🙏

सारिका जोशी नौटियाल "सारा"

©Sarika Joshi Nautiyal
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