निष्कलंक थी स्त्री प्रारम्भ में सृष्टि के सृजन सृष्टि की जननी बन कर प्रेम बरसाया अनंत! आज भटक रही है स्वयं के अस्तित्व के लिए संघर्षरत!! विधना का खेल या मानसिकता हम मनुज की जननी आज जन जन की हो गई....!!! Hello Resties! ❤️ Collab on this #rzpictureprompt and add your thoughts to it! 😊 Highlight and share this beautiful post so no one misses it!😍 Don't forget to check out our pinned post🥳