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जिन्होंने जन्म दिया, अपना जीवन समर्पण किया.. कर पा

जिन्होंने जन्म दिया,
अपना जीवन समर्पण किया..
कर पाऊँ अपने पुरे सपने,
पढ़ा लिखा कर इतना योग्य किया.. 
जब से थोड़ा कमाने लगे, 
परिजनों पर थोड़ा लगाने लगे.. 
कहता है एक और परिवार, 
तुमपर दायित्व हमारा है..
वो घर तो हुआ अब पराया है..
क्या समाज की यही दोहरी व्यवस्था है?
पालन पोषण सब एक सा, 
इस युग में फ़िर ये फ़र्क कैसा है?
बेटा हो या बेटी समान दोनों, 
दोनों ही तन-मन का अंश हैं..
बेटा वंश है तो बेटियाँ दिव्यांश हैं..

©Chanchal's poetry
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