कोई माने या ना माने दुनिया भर में टोक्यो का घर से सब सदा से रहा है और अलग भी रहेगा मैं दुनिया के मंच पर रूप और रंग बदल-बदल कर आती है पुरुष के रूप में सवार होती है तो टोपी बन जाती है महिला के रूप में सिर पर बैठती है तो टोपी कहलाती है अनेक सफल व्यक्तियों उसकी टोपी उसके सिर और उसकी टोपी उसके सिर करते रहते हैं टोपी वाले भी फस जाए तो टोपी को उल्टा कर पीटो पीटो में आनंद लेने लगते हैं भारत में टोपी को वंदनीय माना गया है दिल्ली हो या पंजाब जीतने के लिए अधिक से अधिक मतदाताओं को टोपी पहनने की क्षमता होनी चाहिए जिन्हें टोपी पहनने की कला आती है व टोपी पहना कर प्रमुख कुर्सियों को टोपी किसी की रंग की हो दिल्ली जितना उसका प्रथम लक्ष्य होता है एक ही दल के सरकार होगी तो उसी रंग की टोपी स्वतंत्र दिखाई देगी 12 मिनट ओपीओ के रंग-रूप दिल्ली में तय किए जाते हैं फिर कोशिश होती है कि धीरे-धीरे पूरे देश के लोगों को ही पहना दी जाए उन्हीं लोगों से जनता जनार्दन पट जाए अनेक रंग की टोपियां अध्यारोपित हुई है तरह थी किंतु कुछ भी हुआ दिल्ली से ही हुआ जब देश स्वाधीन हुआ तब सुभाष चंद्र बोस गांधी जी आदि नेता बेदाग टोपी पहनते थे बाद में धीरे-धीरे सफेद वालों की भी सफेद समाप्त होने लगी लोग रंग अनीता की ओर बढ़ने लगे फिर तो कौन सा रंग छोटा लाल नीला काला पीला सब एक्जाम पर एक छत में नीचे दिखाई देने लगे पहले की गतिविधियों में धड़कता थी अब काली पीली होने लगी जब तू काला पीला अधिक होने लगा तो लोगों को रंग दिया से होने लगी और ध्यान फिर साफ स्वच्छ जाने लगा ©Ek villain #टोपी के रंग की अलग ही कहानी #waiting