।। ओ३म् ।। प्र॒जाप॑तौ त्वा दे॒वता॑या॒मुपो॑दके लो॒के नि द॑धाम्यसौ। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥ पद पाठ प्र॒जाप॑ता॒विति॑ प्र॒जाऽप॑तौ। त्वा॒। दे॒वता॑याम्। उपो॑दक॒ इत्युप॑ऽउदके। लो॒के। नि। द॒धा॒मि॒। अ॒सौ॒ ॥ अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ हे जीव ! जो (असौ) यह लोक (नः) हमारे (अघम्) पाप को (अप, शोशुचत्) शीघ्र सुखा देवे, उस (प्रजापतौ) प्रजा के रक्षक (देवतायाम्) पूजनीय परमेश्वर में तथा (उपोदके) उपगत समीपस्थ उदक जिसमें हों (लोके) दर्शनीय स्थान में (त्वा) आप को (नि दधामि) निरन्तर धारण करता हूँ ॥ Hey creature Which (Asau) this lok (nah) shall dry our (agham) sin (up, Shoshuchat) soon, the (Prajapatau) protector of the subjects (Devatayam) in the venerable God and (Upodake) subordinate Udkat in which (Lokay) is visible In the place (Twa), I keep you (childless) constantly. ( यजुर्वेद ३५.६ ) #यजुर्वेद #वेद #धारणकर्त्ता